वैवाहिक अधिकार भरपाई याचिका: एक बहुत बड़ी गलती

RCR: A Big Mistake
४९८अ (498a) / घरेलू हिंसा मुकद्दमेबाज़ी में पत्नी का अपने पति के घर को छोड़ना और इस प्रकार अपने पति को वैवाहिक आनंद से वंचित करना एक बड़ी आम सी बात है। यदि आप के साथ कुछ ऐसा हो जाता है तो कई वकील हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा ९ (अर्थात वैवाहिक अधिकारों की भरपाई) के अंतर्गत याचिका डालने का सुझाव आप को दे सकते हैं। ऐसे वकील आप को एक व्यर्थ प्रयास में फंसाने की कोशिश कर रहे होते हैं। एक ऐसा निरर्थक प्रयास जो उनके लिए धनार्जन का निमित्त बन जायेगा और आप की ज़िन्दगी बर्बाद कर देगा। ऐसे वकीलों से अपनी जान छुड़ा के भागें। यह लेखक ऐसा क्यों सोचता है, इस के बारे में जानने के लिए आगे पढ़िए।

वैवाहिक अधिकार भरपाई याचिका हर याचिका की तरह अदालत से एक निवेदन होती है। निवेदन यह है कि अदालत पत्नी को आदेश दे कि वह वापस अपने पति के पास रहने के लिए जाए और उसे फिर से (या किन्ही मामलों में पहली बार) वैवाहिक सुख देना शुरू करे। यह पार्किकाल्पनिक रूप से किसी वैवाहिक सम्बन्ध विशेष के उस साझेदार का वैवाहिक सम्बन्ध को बचाने का प्रयत्न है जो वैवाहिक सम्बन्ध को बचाना चाहता है। विधान के रचयिताओं ने इस धरा को हिन्दू विवाह अधिनियम में क्यों सम्मिलित किया यह अपने आप में एक बहुत बड़ा रहस्य है। ऐसा नहीं हो सकता कि उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं था कि अनिच्छुक विवाहित को इच्छुक विवाहित के साथ हमबिस्तर होने पर भी प्रेम सम्बन्ध में आने को बाध्य नहीं किया जा सकता।

इसके अलावा भारतीय न्यायपालिका की धीमी रफ़्तार की वजह से ऐसी किसी भी याचिका पर अंतिम निर्णय घोषित होने से बहुत पहले ही एक दूसरे से बिछुड़े हुए दंपत्ति का विवाह सम्बन्ध काल्पनिकता के दायरे में पहुँच चूका होता है। ऐसी याचिका से जुड़ा हुआ कोई भी प्रयत्न आपके जीवन के अनेक मूल्यवान वर्षों को और आप की गाढ़ी कमाई के लाखों रुपयों को खा जायेगा। इतना सब सहने के बाद यदि आप ऐसे मुकद्दमे को जीत भी जाते हैं तो भी आप को आप की पत्नी से कोई भी नहीं मिला सकता। भारत का मुख्य न्यायधीश भी नहीं, और यहाँ तक कि उच्चतम न्यायालय का सम्पूर्ण न्यायालय भी नहीं। सबसे ऊंची अदालत का आदेश होने के बावजूद भी कोई भी आप की भार्या को आप के पास वापस आने को मजबूर नहीं कर सकता।

यह कह के कि वैवाहिक अधिकार भरपाई याचिका आप को ४९८अ (498a) से बचा सकती है, आप का अनैतिक वकील आप को बरगला सकता है। ये सरासर बकवास है। वैवाहिक अधिकार भरपाई याचिका आपको ४९८अ (498a) सम्बंधित आरोपों से किसी भी प्रकार से कतई नहीं बचा सकती। ध्यान रहे कि ऐसी याचिका प्रेषित करने वाले आप अपनी पत्नी को वापस बुला रहे हैं, पत्नी आप के पास आने की इच्छा कानूनी रूप से बिलकुल प्रकट नहीं कर रही है। ऐसे में उस के लिए आप पर दहेज़ प्रताड़ना का आरोप लगाना पहले की तरह आसान होता है, और आम तौर पर ऐसी पत्नियां ऐसे ही आरोप लगाती हैं। आप ही बताएं कि यदि पत्नी से अदालत की मार्फ़त आप उस से अपने आप को छोड़ने की वजह पूछते हैं, और वो (पत्नी) आप से नाराज़ है, तो वो प्रताड़ना के आरोप लगाने के अतिरिक्त और कौन सा रास्ता अख़्तियार कर सकती है?

आपराधिक सतह पर वैवाहिक अधिकार भरपाई याचिका दायर करना पति की ओर से एक ज़बरदस्त भूल है। ऐसी याचिका डालने का सीधा सीधा कानूनी मतलब यह निकलता है कि आप ने अपनी पत्नी के सभी अत्याचारों को माफ़ कर दिया है, यहाँ तक कि आप को इस बात पर कोई नाराज़गी नहीं है कि वह आप को छोड़ के चली गयी है; आप को शारीरिक भोग और प्रेम से वंचित कर रही है; आप पर और आप के परिवारजनों पर घरेलू हिंसा का आक्षेप लगा चुकी है; और अन्य समरूपी नालिशें दायर कर चुकी है, आरोप लगा चुकी है, कृत्य कर चुकी है। क्रूरता के आधार पर तलाक की याचिका दायर करने का अधिकार आप उसी क्षण खो देते हैं जब आप वैवाहिक अधिकार भरपाई याचिका प्रेषित करते हैं। व्यवहारतः ऐसी याचिका डालते ही याचिका का अंतिम फ़ैसला हो जाने के महीनों बाद तक, या फिर हो सकता है सालों बाद तक आप नितांत रूप से किसी भी आधार पर विवाह विच्छेद याचिका प्रेषित करने का अधिकार खो बैठते हैं।

इतना ही नहीं, आप को अपनी याचिका पर डाली गयी अपीलें उच्चतम न्यायालय तक लड़नी पड़ेगी, और उस के बाद यदि फैसला आप के हक़ में होता है तो आदेश को लागू कराने के लिए फिर से निचली अदालत से ले कर उच्चतम न्यायालय तक लड़ाई लड़नी पड़ेगी। इतना सब करने के बाद भी आपको मिला आदेश लागू दुनिया की कोई ताकत जबरन लागू नहीं करवा सकती।

हिन्दू विवाह अधिनियम में एक ऐसा प्रावधान भी है जिस के अंतर्गत वैवाहिक अधिकार भरपाई याचिका के फलस्वरूप याचक को सकारात्मक निर्णय प्राप्त होने के बाद एक साल के अंदर पति पत्नी को दुबारा साथ रहना शुरू करना पड़ता है। यदि ऐसा नहीं हो पाटा है तो दोनों में से कोई भी न्यायालय के समक्ष आवेदन प्रेषित कर के विवाह विच्छेद आदेश प्राप्त कर सकता है। इस प्रावधान की वजह से वैवाहिक अधिकार भरपाई का विधान में विद्यमान पूरा सिद्धांत निरर्थक हो जाता है, क्यूंकि जिस पक्ष को तलाक चाहिए वह दुसरे पक्ष को अपनी मंशा से अनभिज्ञ रख के मुकद्दमा जीतने दे सकता है; तत्पश्चात एक साल तक सहवास करने से इंकार कर सकता है; और फिर ऐसी विवाह विच्छेद याचिका प्रेषित कर सकता है जिसकी कामयाबी की शत प्रतिशत गारंटी है। इस प्रकार से साफ़ मंशा रखने वाले पक्ष के द्वारा धारा ९ के लापरवाह इस्तेमाल होने के कारण विवाह सम्बन्ध को छोड़ने वाला पक्ष उसे बड़ी आसानी से तोड़ भी सकता है।

उपरोक्त अनुच्छेद से यह भी साफ़ हो जाता है की धारा ९ का प्रयोग करने से आप को आप की पत्नी द्वारा प्रेषित की गयी किसी भी विवाह विच्छेद याचिका को कुंठित करने का कोई भी रास्ता कतई नहीं मिलता है। ऐसा कहना भी मूर्खता है; और सच्चाई इसके ठीक विपरीत है, क्यूंकि आप की वैवाहिक अधिकार भरपाई याचिका आप की पत्नी को ऐसी परिस्थिति में एक के बजाय दो मार्ग प्रदान कर देती है।

एक और मज़े की बात यह है कि हमारे देश में क़ानून पत्नी को साथ साथ वैवाहिक अधिकार भरपाई याचिका और ४९८अ (498a) आक्षेप प्रेषित करने का अधिकार देता है। ऐसी भयंकर कानूनी विडम्बना का कारण हमारे देश में अदालतों द्वारा क़ानून की एकतरफा व्याख्या है। उपरोक्त स्थिति में अदालत यह नहीं मानती है की वैवाहिक अधिकार भरपाई याचिका प्रेषित कर के पत्नी ने अपने पति की तथाकथित क्रूरता को अनदेखा कर दिया है। ४९८अ (498a) आक्षेप को भी वे स्वीकार कर लेते हैं, जिस का सीधा सीधा कानूनी अर्थ ये निकलता है कि एक पत्नी अपने पति को एक ही समय पर एक तरफ़ से अपने शयनकक्ष में लाने की कोशिश और दूसरी ओर से जेल भेजने की कोशिश करने का तर्कहीन कानूनी अत्याचार कानून की ही मदद से कर रही है।

धारा ९ के अंतर्गत प्रेषित याचिका आप के रख रखाव खर्चे को भी काम नहीं कर सकती है, क्यूंकि आप की पत्नी के पास आप से भरण पोषण की मांग करने के एक से अधिक कानूनी रास्ते हैं। भारत विश्व का एक मात्र देश है जिस में नाराज़ पत्नी के पास पति से रख रखाव लेने के चार चार कानूनी रास्ते हैं। यदि उस ने आप को परेशान करने की ठान ली है तो आप उस के द्वारा परेशान होने से नहीं बच सकते हैं। इस के अलावा यह भी ध्यान रहे कि हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा २४ उसे आप के खिलाफ मुकद्दमा लड़ने के पैसे आप ही से उगाहने का अधिकार देती है। इस सब के बाद यह भी गौर तलब है की यद्यपि आप को अपने शहर में वैवाहिक अधिकार भरपाई याचिका प्रेषित करने का अधिकार है, तथापि कानूनी इतिहास साफ़ साफ़ दर्शाता है कि कानूनी लड़ाई आप के शहर के बजाय उस के शहर में होने की सम्भावना अधिक है।

अतैव इस वैधानिक प्रावधान का प्रयोग करने के विचार को पूर्णतः त्याग दें।


द्वारा लिखित
मनीष उदार द्वारा प्रकाशित।

पृष्ठ को बनाया गया।
अंतिम अद्यतन २० अप्रैल २०१५ को किया गया।
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