महिला सैल या SPUWAC (महिला एवं बाल पुलिस इकाई) में दायर मामले एक आयामी नहीं होते हैं, अर्थात उन में केवल एक ही शिकायत नहीं होती है, या
ज़्यादा साफ़ कहें तो सिर्फ एक ही प्रकार की शिकायत नहीं होती है। महिला प्रकोष्ठ में दायर शिकायत में आम तौर से दहेज प्रताड़ना (यानि दहेज़ की एक मांग
अथवा एक से ज़्यादा मांगों से सम्बंधित प्रताड़ना) का आरोप सबसे ज़्यादा पाये जाने वाला घटक है। यह प्रायः प्रत्येक शिकायत का एक तरह से अनिवार्य अंश बन
गया है। जैसा कि पाठकों को ज्ञात है, पति एवं ससुराल वालों पर दहेज सम्बंधित क्रूरता के आरोप पत्नी लगाती है। प्रत्येक शिकायत में लिखे जाने वाले विशिष्ट
विवरण अलग अलग प्रकार के होते हैं, हालांकि शिकायत सर्वदा भारतीय दंड संहिता धरा ४९८अ (498a) के अंतर्गत होती है।
इन शिकायतों का एक और आम हिस्सा पत्नी द्वारा पति पर अपने गहने और/अथवा कपडे और/अथवा अपने सामन पर नाजायज़ कब्ज़ा करने का आरोप होता है।
उपरोक्त वस्तुओं को कानूनी भाषा में, पारम्परिक भाषा की ही तरह स्त्रीधन कहा जाता है। इस शीर्षक के अंतर्गत पति द्वारा पत्नी को शादी से पहले दिए गए
उपहार, किसी भी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों (वर, वर के माता पिता, मेहमान, वधु के माता पिता, और किसी भी अन्य व्यक्ति) द्वारा शादी के उपलक्ष्य पर दिए गए
उपहार , और किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा दिए गए शादी हो जाने के बाद के उपहार शामिल हैं। यह उपहार किसी भी प्रकार के हो सकते हैं, जैसे कि फ़र्ज़
के तौर पर मकान, पैसा, ज़ेवर, गाडी वगैरह। स्त्रीधन किसी भी पत्नी की निजी एवं अनन्य संपत्ति होता है। उपरोक्त परिभाषा हिन्दू विवाह अधिनियम द्वारा प्रदान
की गयी है, और अनेक प्रेक्षकों का कहना है कि न्यायपालिका द्वारा इस परिभाषा को विभिन्न प्रकार के अन्य परिपेक्षों में भी मान्यता दी गयी है। ऐसी परिपाटी को
संभवतः अन्यायपूर्ण माना जा सकता है, और यह लेखक इसे अन्यायपूर्ण मानता भी है। आम तौर से हर आदमी न्यायपूर्ण और अन्यायपूर्ण की परिभाषा अपनी
सुविधा और सन्दर्भ के अनुसार निर्धारित कर लेता है, इसलिए यदि आप न्यायपालिका की इस परिपाटी को न्यायपूर्ण मानते हैं, तो ग़ालिबन आप को इस का हक़
है।
पति के द्वारा स्त्रीधन का हड़पना भारतीय दंड संहिता की धारा 406 ("अमानत में ख़यानत के लिए सज़ा") में दिए गए प्रावधान के अंतर्गत दंडनीय अपराध है। जहां तक स्वयं अपराध का प्रश्न है, वह धारा ४०५ में वर्णित है। धारा ४०७ से धारा ४०९ में अलग अलग प्रकार के संबंधादि विशेष के प्रसंग में अमानत में ख़यानत की सज़ा वर्णित है। इन धाराओं में चित्रित विभिन्न सम्बन्ध प्रकारों में माल भेजने वाले और माल का वहन करने वाले के बीच, मालिक और मुलाज़िम के बीच, संपत्ति के स्वामी और बैंकर के बीच, जनता और जन सेवक के बीच, और संपत्ति के स्वामी और उस के द्वारा अधिकृत व्यक्तियों के बीच के संबंधादि सम्मिलित हैं। जहां धारा ४०६ में ३ साल की साधारण अथवा कठिन सज़ा का प्रावधान है, वहीँ धारा ४०७ और ४०८ में सात सात साल की साधारण और कठिन सज़ा लिखी गयी है, और धारा ४०९ में १० साल से ले के उम्र क़ैद जैसे भीषण दंड निर्धारित किये गए हैं। ऐसी गंभीर धाराओं के परिपेक्षस्वरूप धारा ४०६ को "अमानत में साधारण ख़यानत के लिए सज़ा" शीर्षित करना उचित लगता है।
स्त्रीधन के उस घटक के बारे में वकीलों के बीच परस्पर विरोधी विचार देखे जा सकते हैं जो पति द्वारा पत्नी को उपहार के रूप में दिए जाने वाली वस्तुओं का कुल जोड़ होता है। अनेक विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक ऐसा कार्य है जो कि आपराधिक देयता को धारा ४०६ के रूप में आकर्षित करता है। अन्य विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसा करने से सिर्फ नागरिक देयता का मामला बनता है।
स्थिति वास्तव में चिंताजनक है यदि उपरोक्त क्रिया द्वारा आपराधिक देयता का प्रावधान आकर्षित होता है। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्यूंकि ऐसी स्थिति में पति और उसके परिवारजन अपनी सज्जनता, उदारता, और अपनी बहू / पत्नी के प्रति अपने स्नेह के कारण कानून के शिकार बन सकते हैं और जेल यात्रा कर सकने की स्थिति में आ सकते हैं। धारा ४०६ की ऐसी व्याख्या उसे धारा ४९८अ से कहीं ज़्यादा खतरनाक बना देती है, क्यूंकि यद्यपि दहेज़ प्रताड़ना सम्बंधित आरोपों के अंतर्गत किसी आरोपित व्यकित के घर पर सैद्धांतिक रूप से भी छापा नहीं मारा जा सकता तथापि अमानत में ख़यानत से सम्बंधित धारा के अंतर्गत विधान प्रवर्तक प्राधिकरण समक्ष लगाये गए संज्ञेय आरोपी के आधार पर घर पर सैद्धांतिक रूप से छापा डाला जा सकता है। ऐसी व्याख्या से एक और नुक्सान यह है कि परिवार की संपत्ति आरम्भ पर्यन्त बंटी हुई हो जाती है, किसी के द्वारा विभाजन प्रयत्न चलाये जाने के अभाव में भी। यह पढ़ के आप को दुःख हो सकता है, लेकिन ऐसी व्याख्या उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए कुछ फैसलों की बदौलत आजकल प्रायः सर्वव्यापित है, विशेषतः [Krishna Bhatacharjee vs. Sarathi Choudhury and Anr., 2015 SCC Online SC 1229, November 20, 2015] स्त्रोत के मद्देनज़र।
कुछ वर्षों पहले जब सूचना माध्यमों द्वारा चलायी जाने वाली "मुहिम" अपने चरम पर थी तब ऐसा वास्तव में होता भी
था। पिछले वर्षों में दहेज प्रकरणों में पुलिस द्वारा ऐसे छापों को डाले जाने की खबर नहीं मिल रही है।
भयभीत पति अब तर्कसंगत प्रश्न कर सकते हैं कि क्या इस का मतलब ये निकलता है कि उन के घरों पर छापे पड़ सकने की संभावना है। कुछ वर्षों पहले जब सूचना माध्यमों द्वारा चलायी जाने वाली "मुहिम" अपने चरम पर थी तब ऐसा वास्तव में होता भी था। पिछले कुछ वर्षों से दहेज प्रकरणों में पुलिस द्वारा ऐसे छापों को डाले जाने की खबरें नहीं मिल रही है। इस की एक वजह यह है कि पुलिस इज़्ज़तदार शहरियों के घरों पर छापे मारने की परिपाटी से उत्पन्न होने वाले संभावित परिणामों को डरने का कारण जानने लगी है, ख़ास तौर पर इसलिए क्यूंकि दहेज आरोपित परिवारों में से ९९ प्रतिशत परिवार समाज में सम्मानित परिवार होते हैं। एक और वजह ये है कि आभूषणों को ज़ब्त करने से कार्यकारी सिरदर्दी शुरू होने का भय है। आखिर कौन ज़ब्त किये गए आभूषणों की मामले का फ़ैसला होने तक सलामती की ज़िम्मेदारी लेगा? और ज़ब्त किये गए आभूषण भी तो अमानत हैं? अगर इस अमानत में ख़यानत हो गयी तो पुलिस कर्मचारियों पर भी प्रकरण बन सकता है। एक छुपा हुआ कारण यह है कि यदि स्त्रीधन सम्बंधित आरोपों के सन्दर्भ में आज जन साधारण के एक सदस्य के घर पे छापा पड़ सकता है तो कल पुलिस के किसी अफसर या किसी उद्योगपति या किसी नेता के घर पर भी छापा पड़ सकता है। आभूषणों में लगे स्वर्ण की शुद्धता पर भी मुकद्दमे के दौरान सवाल उठ सकते हैं। यह एक ऐसी संभव स्थिति है जिस का सामना प्रभावशाली जौहरी वर्ग कतई नहीं करना चाहता।
यदि विवाह सम्बन्ध टूट जाये तो पत्नी द्वारा पति या / और उसके परिवार के सदस्यों को दिए गए सभी उपहारों को वापस देना अनिवार्य है।
यदि अदालत ऐसे उपहारों को शादी की ऐवज़ में दिया गया ठहराती है तो इन्हें दहेज माना जाएगा। ऐसी सूरत में पति और पति पक्ष के लोगों को दहेज अधिनियम
के अंतर्गत दहेज मांगने या स्वीकार करने के कारण कारावास का सामना करना पड़ सकता है।
ऐसी स्थिति का समाधान केवल एक है –उसको उत्पन्न ही न होने देना। शादी के दौरान या आगे पीछे न कोई तोहफा दें न मांगे न स्वीकार करें, और
इस तथ्य को शादी के दिन लिखित रूप से दर्ज करें। लिखित अभिलेख में गवाहों के नाम और दस्तखत शामिल करना न भूलें। विवाह सम्बन्ध स्थापित हो जाने के
बाद भी अपने द्वारा पत्नी को दिए गए तोहफों का अभिलेख बनाते रहे, शर्त सिर्फ यह है कि जब तलक बीवी परिवार का अभिन्न सदस्य नहीं बन जाती और
परिवार के दुःख सुख को अपना दुःख सुख नहीं समझने लग जाती तब तक ज़्यादा तोहफेबाज़ी न करें। इस लेखक की सहानुभूति और शुभकामनायें अविकार करें,
क्यूंकि इस बात का आकलन करने के लिए आज कल बहुत ज़्यादा शुभकामनाओं की ज़रुरत पड़ती है कि बीवी को परिवार का अभिन्न सदस्य कब मान लेना
चाहिए। ऐसा इसलिए क्यूंकि आजकल विवाह सम्बन्ध शादी के बीस बीस साल बाद भी टूट के बिखर जाते हैं।
सामान्यतः महिला सैल या महिला एवं बाल पुलिस इकाई में दायर शिकायतों में भारतीय दंड संहिता की धारा ३४ (समान आपराधिक इरादा) तीसरी आम धारा होती
है। पति के परिवार के आरोपित सदस्यों पर धारा 498a और धारा 406 आईपीसी के तहत अपराधों के कृत्य में एक जैसा इरादा होने का आरोप लगाया जाता
है।
भारतीय दंड संहिता की इन तीनों धाराओं के अंतर्गत आरोप लगाने वाली हर पत्नी को अपने आरोपों को अखण्डनीय रूप से साबित करना पड़ता है। उसे कानूनी
राहत पाने के लिए अपने आरोपों को निचली अदालत से ले कर सर्वोच्च न्यायालय के स्तर तक सिद्ध करना पड़ता है, तब जाकर पति और उसके परिवार के सदस्यों
को कारावास के रूप में दंड मिलता है। यह शर्त उस हाल में भी लागू होती है जहां वह सिर्फ एक या दो धाराओं के अंतर्गत आरोप लगाती है। पति को भी यह
साबित करना पड़ता है कि पत्नी अगडम-बगडम आरोप लगा रही है, यदि वह कानूनी राहत पाने का इच्छुक है।