प्रवासी भारतियों तथा भारतीय मूल के व्यक्तियों हेतु ४९८अ (498a) प्रश्नावली

NRIs and PIOs: 498a FAQs

भूमिका

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तकनीकी योग्यताओं वाले भारतीय युवकों या भारतीय कंप्यूटर इंजीनियरों और उनके परिवारों का ४९८अ (498a) प्रकरणों में फँस जाना एक बड़ी आम सी बात है। ऐसे अनेकानेक युवक विदेश गमन करते हैं और वहां जा के नौकरियां या कारोबार तलाशते और पाते हैं। अपने देशवासी भाइयों की तरह ये लोग भी पड़े लिखे और होशियार होते हैं, और इनकी अथक कोशिश रहती है कि मेहनत और तपस्या कर के ये अपने चुने हुए क्षेत्र में तरक्की करें। ये लोग झूठ बोल के और चोरी कर के आगे बढ़ना कतई नहीं चाहते। अतैव किसी भी न्यायप्रिय व्यक्ति को इन लोगो की ऐसी पीड़ा देख के बहुत दुःख होता है कि वे महिलाऐं जो जीवन में तरक्की के लिए किसी कामयाब वर को चुन ने के रास्ते भर को पर्याप्त समझती हैं, वही महिलाऐं इन पर और इन के माता पिता पर दहेज मांग के फटाफट करोड़पति बनने की कोशिश करने का आरोप लगाती हैं। यह एक विडम्बना है।

ऐसी महिलाओं की अपने पति के साथ विदेश में रहते हुए आम प्रवृत्ति यह होती है कि यह पहले पहचान जाती है कि ये आदमी तेरी कठपुतली नहीं बनेगा। तत्पश्चात ये या तो हंगामा खड़ा करती हैं, या फिर कोई बहाना बना के वापस स्वदेश आ जाती हैं। देश पहुँचने के बाद वह किसी भी बेज़मीर वकील से मिलती है और फिर उस की मदद से अर्धसत्यों, झूठों, सच्चाईयों और मिथ्या ग़लतबयानियों का सम्मिश्रण तैयार करती है। इस झूठ की इमारत को वह दहेज़ आक्षेप के रूप में निकटतम महिला प्रकोष्ठ में जमा कर देती है। आम तौर से ऐसे आक्षेपों में पति पत्नी द्वारा भारत में इक्कट्ठे बिताये गए समय के बारे में दहेज़ प्रताड़ना सम्बंधित आरोप होते हैं। विदेश में बिठाये गए समय के बारे में भी ऊटपटांग मसाला ऐसी शिकायतों में सम्मिलित होता है।

एक बड़ी दुष्ट प्रकार की पत्नी ऐसी होती है जिसे दहेज प्रताड़ना के आरोप लगाने पर भी चैन नहीं आता। वह और अधिक अनर्गल और अनाप शनाप आरोप लगाती है। ऐसा भी समझा जा सकता है कि दहेज उत्पीड़न आरोप उद्योग में यह एक उभरता प्रचलन है। (नीचे लिखे प्रिंस तुली प्रकरण के बारे में पढ़ेंगे तो आप को इस क्षेत्र के बारे में कुछ और ज्ञान मिलेगा।) ऐसी महिलाऐं अप्राकृतिक लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने, मारपीट, धोखाधड़ी, हत्या का प्रयास करने, दवपत्नीत्व, धर्षण, चोट पहुँचाने, बलात्कार, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और धमकी देने जैसे अपराधों में से अपनी मर्ज़ी का मिश्रण बना के आरोप लगाती है।

ऐसी महिला को इस बात की कोई परवाह नहीं होती कि उस के आरोप सरासर बेसिरपैर और घटिया किस्म के होते हैं। बड़े खेद के बात है कि समाज बेक़सूर पुरुषों के विरुद्ध उनकी पत्नियों द्वारा किये गए ऐसे फ़ालतू और अमानवीय कारनामों को बड़ी नरमी से नज़र से देखता है। अनेक बार ऐसा देखा गया है कि अदालतों के लिखित निर्णयों में जज लिखते हैं की आरोपों को खारिज कर दिया गया क्यूंकि जज को मालूम हुआ कि महिला ने गुस्से में आ के आरोप जड़ दिए थे। गौर फरमायें, पुरुषों को गुस्से में किये अपराधों की वजह से कभी कभी फांसी पर झूलना पड़ जाता है। ऐसा अगर महिला करे तो उस का कुछ नहीं बिगड़ता बावजूद इस बात के कि झूठे इलज़ाम लगाना एक गंभीर अपराध है।

फिर वह स्थानीय पुलिस के पास जाती है और अपनी शिकायत दर्ज करवाती है।

तत्पश्चात पुलिस आरोपी प्रवासी पति के भारत में स्थित माता पिता को नोटिस या चिट्ठी भेजती है। प्रवासी पति को जब आक्षेप के बारे में पता चलता है तो वह सफ़ेद झूठों के कारण चकित और स्तब्ध हो जाता है, और अपनी नौकरी, अपने माता पिता, देश विदेश में आने जाने की अपनी आज़ादी, और पुलिस कार्यप्रणाली को लेकर तरह तरह के डर और आशंकाएं उस के मन में घर कर लेती हैं। घोषित अपराधी करार दिया जाना, इंटरपोल द्वारा जारी किये गए रेड कार्नर नोटिस का विषय बन जाना, प्रत्यर्पण का शिकार बन जाना, ज़मानत पा के वापस अपने निवास स्थान पे पहुंचना और नौकरी कर पाना, ये मुख्य संशय उसे परेशान करने लग जाते हैं। यहाँ पर यह लेखक इन विषयों की विवेचना करने का एक छोटा प्रयास करेगा –छोटा इसलिए कि ये सभी विषय अपने आप में अनेक ग्रंथों के लायक विशाल कानूनी विषय वस्तुएं हैं, और एक लेख महज में इन के साथ इन्साफ करना लगभग असंभव है।

क्या वैवाहिक कलह सम्बंधित प्रकरणों में विदेशी नागरिक पति का भारत को प्रत्यर्पण हो सकता है?

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इस प्रश्न का सरल सटीक जवाब है, "कतई नहीं"। यदि आप विदेशी नागरिक हैं तो आप के देश की सरकार आप को किसी और देश को प्रत्यर्पित करने में सक्षम तो है, लेकिन सिर्फ उस प्रकार के प्रकरणों में जिन में आप ने कोई ऐसा कृत्य किया हो जो कि दोनों देशों में अपराध माना जाता है। भारत को छोड़ के कोई और देश दहेज़ प्रताड़ना को अपराध की मान्यता नहीं देता है। इतना ही नहीं, कुछ देश ऐसे भी हैं जो कि आरोपों की कोटि की सरासर उपेक्षा करते हैं और अपने नागरिकों को किसी और देश को प्रत्यर्पित नहीं करते हैं। ये अलग बात है कि आरोपित व्यक्ति / व्यक्तियों की वापसी के लिए जब क्षुब्ध देश शरणदाता देश पर बम बरसाने लगता है तो अक्सर ऐसे देशों को बात समझ में आ जाती है।

भारत सरकार यदि आप को प्राथमिकी में दर्ज दहेज प्रताड़ना के अतिरिक्त धाराओं के तहत आप के देश से भारत प्रत्यर्पित करवाना चाहती है तो उसे एक कानूनी प्रक्रिया विशेष का पालन करना पड़ेगा, जिस में स्थानीय राष्ट्र की सरकार को यह सिद्ध करना पड़ेगा कि आप के विरुद्ध जो आरोप हैं वे प्रथमदृष्टा सत्य हैं। किसी दूसरे देश में स्थानीय वकीलों को सारतः भारत की ओर से स्थानीय अदालतों के समक्ष अभियोग के लिए कार्यरत करवाना भारत सरकार के लिए एक बहुत बड़ा कूटनीतिक कदम है।

इसके अलावा, यदि अदालती कार्रवाई के परिणाम भारत सरकार के लिए नकारात्मक निकलते हैं तो कूटनीतिक संबंधों में गिरावट आना लगभग निश्चित है। यह इसलिए है क्यूंकि ऐसी स्थिति में देश का अत्यधिक मात्रा में मानभंग होता है। पुरुलिया हथियार फ़ेंक प्रकरण में डेनमार्क सरकार ने किम डेवी के प्रत्यर्पण के लिए जो याचिका दायर की थी वह वहां की अदालत द्वारा रद्द कर दी गयी। इस के बाद दोनों देशों के संबंधों में बहुत गंभीर रूप से गिरावट आई थी।

ऐसा जोखिम से भरा उद्यम सिर्फ एक महिला द्वारा वैवाहिक कलह उपरान्त आरोपित उसके पति को प्रत्यर्पित करने के लिए कतई नहीं किया जायेगा। पत्नी द्वारा लगाये गए अप्राकृतिक लैंगिक उत्पीड़न के आरोपों की उपस्थिति होने के बावजूद भी नहीं किया जायेगा। हाँ यदि मीडिया में में हंगामा मच जाता है तो कोई भी पूर्वकथन नहीं किया जा सकता क्यूंकि ऐसी स्थिति में हमारे देश की सरकार कुछ भी कर सकती है। लेकिन ऐसी स्थिति भी यदि उत्पन्न हो जाती है तो भी आरोपित भारत को प्रत्यर्पित होने से पहले अपने उस देश में बहुत लम्बा अरसा गुज़ारने की अपेक्षा कर सकता है। ऐसा इसलिए कि उस के (सरकार द्वारा कानूनी मददगारों के रूप में मुफ्त प्रदान किये) वकील द्वारा भारतीय विधान, स्थानीय विधान, और अंतर्राष्ट्रीय विधान से सम्बंधित कई ऐसे सवाल उठाये जायेंगे जिन के जवाब उस देश की सरकार आसानी से नहीं दे सकेगी।

(अप्राकृतिक लैंगिक उत्पीड़न सम्बंधित पत्नी द्वारा पति पर लगाये जाने वाले इल्ज़ामों के बारे में थोड़ा ज्ञान: यह एक ऐसी बहुत दिलचस्प बात है जिसे इस लेखक ने हाल ही में समाचारों में देखा। एक भूतपूर्व विश्व सुंदरी ने अपने पति (प्रिंस तुली) पर अप्राकृतिक लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने का आरोप लगाया। यह पति नित्य दुनिया भर में घूमने वाला व्यक्ति है, और इस का भारत के अलावा कम से कम एक और देश में अपना घर है। इलज़ाम ऐसा है कि ध्यान से समझने के लायक है। अप्राकृतिक लैंगिक सम्बन्ध भारतीय दंड संहिता की बलात्कार वाली धारा से अलग धारा में आता है। चूंकि वैवाहिक सम्बन्ध में बंधने के बाद पत्नी के साथ बलात्कार भारत में अपराधों की श्रेणी में नहीं आता इसलिए भारत सरकार ऐसे इलज़ाम के बूते पर अपने नागरिक को (या किसी भी आरोपी को) प्रत्यर्पित नहीं करेगी।

परन्तु यदि एक ऐसी आपराधिक धारा का प्रयोग किया जाये जिस के अंतर्गत किये गए कृत्य को उस हाल में भी अपराध माना जाता हो जहां कि किसी पति ने ऐसा कृत्य अपनी पत्नी के साथ किया हो, तो आरोप लगाने वाले को अनेक फायदे हो सकते हैं। यह कहना अनावश्यक है कि लैंगिक आक्रमण दुनिया के हर देश में अपराध माना जाता है। यह भी सत्य है कि अनेक देशों में पति द्वारा किया गया किसी भी प्रकार का लैंगिक उत्पीड़न भी अपराध माना जाता है, और फलतः प्रत्यर्पण योग्य माना जाता है। शिकायतकर्ता पत्नी शायद इस बात को सोच के बैठी हो कि लैंगिक आरोप लगाने की वजह से मीडिया देश में हंगामा खड़ा कर देगा, और इस के परिणामस्वरूप पति के क़ानून से बचने की नज़र से या फिर कानूनी कार्रवाई को लम्बा खींचने के आशय से देश छोड़ कर भागने की संभावना कम हो जाएगी। संभवतः उसे यह परामर्श मिला हो कि ऐसा आरोप लगाने के बाद पति अगर भाग भी जाता है तो उस को भारत प्रत्यर्पित कर दिया जायेगा, क्यूंकि उक्त अपराध न सिर्फ भारत में बल्कि और अनेक देशों में भी अपराध माना जाता है। ये मुमकिन है कि पतियों के विरुद्ध ऐसे आरोप भविष्य में और ज़्यादा आम हो जायेंगे। यदि ऐसा आरोप भारत में रहने वाले पति के विरुद्ध लगाया जाता है तो पत्नी को क़ानून द्वारा लैंगिक अपराधों की शिकायतकर्ता महिलाओं को दी जाने वाली गुमनामी की गारंटी मिल जाती है। पत्नी उस सामाजिक बहिष्कार से बचने के लिए ऐसा कर रही होगी जो कि दहेज़ प्रताड़ना आरोपों को लगाने के बाद अवश्यंभावी हो जाता है।)

रेड कॉर्नर नोटिस और उनसे संबंधित प्रश्न

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रेड कार्नर नोटिस इंटरपोल अर्थात अंतर्राष्ट्रीय पुलिस संस्था द्वारा जारी किये जाते हैं। ये नोटिस किसी देश विशेष की दरख्वास्त पर जारी किये जाते हैं। इनका मक़सद अपराधियों की गिरफ्तारी और प्रत्यर्पण को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वांछित करार देना होता है। यदि आप रेड कार्नर नोटिस की विषय वास्तु बन चुके विदेशी नागरिक हैं और भारत और अपने देश से अलग किसी तीसरे देश में रह रहे हैं या किसी तीसरे देश की ओर प्रस्थान करने की योजना बना रहे हैं तो जिस देश में आप रह रहे हैं या जिस देश को आप जायेंगे उसे अधिकार है कि वह रेड कार्नर नोटिस जारी कराने वाले देश को आप को प्रत्यर्पित करे। यदि आप के विरुद्ध कोई रेड कार्नर नोटिस नहीं हैं तो कोई भी तीसरा देश आम तौर से आप के विरुद्ध प्रत्यर्पण कार्रवाई शुरू नहीं करेगा। रेड कार्नर नोटिस वैश्विक स्तर पर कुख्यात हो जाने की गारंटी देता है। आश्वस्त रहें कि यदि भारत सरकार आप के विरुद्ध रेड कार्नर नोटिस जारी कराने में कामयाब हो जाती है तो आप का नाम हाफ़िज़ सईद, ओट्टाविओ क्वात्त्रोची, और जूलियन असांज की श्रेणी में पहुँच जायेगा।

वैवाहिक झगड़ों में अनुरोध पत्र (लेटर्स रोगेटरी)

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यदि आप की पत्नी भारत में बहुत प्रभावशाली है और उस ने आप के विरुद्ध विदेश स्थित निवास स्थान में आपराधिक कारगुज़ारी से सम्बंधित आरोप लगाये हैं तो वह आप के दहेज प्रकरण में अनुरोध पत्र (लेटर रोगेटरी) का इंतज़ाम कर सकती है। यह ऐसा पात्र होता हैं जो कि भारत में स्थित किसी अदालत द्वारा विदेशी प्राधिकारियों से आप पर अभियोग चलने या आप का बयान लेने या आप के विरूद्ध सबूत इक्कट्ठे करने का औपचारिक अनुरोध होता है। किसी भी अनुरोध पात्र के अंतर्गत किये गए प्रत्येक अनुरोध को भारतीय कार्यपद्धति, भारतीय विधान, आम मान्यता प्राप्त अंतर्राष्ट्रीय कार्यपद्धति या दोनों देशों के बीच कालांतर यावत् कार्यपद्धति, अंतर्राष्ट्रीय विधान, गंतव्य देश के विधान और गंतव्य देश की कार्यपद्धति के अनुरूप होना अनिवार्य है, अन्यथा उस अनुरोध के आधार पे कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती। इतना ही नहीं, दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों द्वारा उत्पन्न गतिरोध और हस्तक्षेप ऐसे पात्र के अंतर्गत होने वाली प्रक्रिया को और अधिक विलम्बित करते हैं। ऊपर से अदालतों के वे सभी स्तर हैं जिन में आप उस देश में पुनर्विचार आवेदन डाल सकते हैं, और भारत में अदालतों के वे सभी स्तर हैं जहाँ भारत सरकार आप की पत्नी की याचिका का विरोध कर सकती है, यदि वह उस से सहमत नहीं है और यदि वह आपकी पत्नी के साथ सह्याचक नहीं है। अनुरोध पात्र जारी करवाने की कोशिश अपने साथ आप की पत्नी के लिए विफलता की गारंटी ले के आती है, सिवाय ऐसी स्थिति के जहाँ आप की पत्नी आप के विरुद्ध सार्वजनिक दुष्प्रचार के प्रेरित करना चाहती है। सच तो यह है की ऐसी स्थिति में भी अदालत में उस का मज़ाक बन सकता है और तत्पश्चात मीडिया में लेने के देने पड़ सकते हैं।

वैवाहिक झगड़ों में भारतीय नागरिकों का भारत को प्रत्यर्पण

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यदि आप भारत के नागरिक हैं तो भारत सरकार आप को ऐसी स्थितियों में प्रत्यर्पित नहीं करवा सकती जिन में वो गैर नागरिकों को प्रत्यर्पित नहीं करवा सकती। लेकिन वो आप के पासपोर्ट को रद्द कर सकती है और तत्पश्चात ऐसे देशों से स्वदेश वापस भिजवा सकती है जिन में भारत द्वारा कूटनीतिक दबाव बनाया जा सकता है। भारत की कूटनीतिक सेवा में विश्व में दूसरे सबसे ज़्यादा कूटनीतिज्ञ हैं, और उन में से अनेक वस्तुतः बहुत चुस्त हैं और अपनी चुस्ती के लिए मशहूर हैं। लेकिन इस सब के बावजूद गुलशन कुमार / नदीम सैफी प्रकरण ने दिखा दिया कि भारतीय नागरिक भी कभी कभी प्रत्यर्पित होने से बच सकते हैं। पाठकों को हो सकता है यह भी ज्ञात हो कि ललित मोदी और संगीता रिचर्ड (देवयानी खोब्रागड़े प्रकरण में जो महिला आया की नौकरी कर रही थी) दोनों के पासपोर्ट भारत सरकार द्वारा प्रत्यर्पण की फ़िराक़ में रद्द कर दिए गए थे लेकिन वांछित परिणाम भारत सरकार को नहीं मिले। दोनों मामलों में पब्लिक की ओर से बहुत थू थू हुई और खोब्रागड़े प्रकरण में तो मामला यहाँ तक बिगड़ गया कि देवयानी को लेने के देने पद गए, नौकरी पर वह अधर में लटका दी गयी या फिर एक तरह से निलंबित कर दी गयी, और बेचारी को अभी तक नहीं मालूम है कि उस के साथ होगा क्या।

घोषित अपराधी अवस्था

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यदि कोई विदेश में रहने वाला आरोपित व्यक्ति विदेश से भारत नहीं आता है, या फिर अदालत या पुलिस के समक्ष बार बार तलब होने के बावजूद या चेतावनी मिलने के बावजूद आत्मसमर्पण नहीं करता है तो उसे सक्षम अदालत द्वारा घोषित अपराधी या उद्घोषित अपराधी करार दिया जा सकता है। घोषित अपराधी अवस्था में पहुँचने के बाद आरोपी को भविष्य में कभी भारत वापस आने का फ़ैसला करने के बावजूद भी ज़मानत मिलना नामुमकिन हो जाता है। यदि रेड कार्नर नोटिस जारी हो जाता है तो इसका सीधा सीधा यह मतलब है कि घोषित अपराधी को पूरी दुनिया में घोषित अपराधी की मान्यता दी जा चुकी है।

घोषित अपराधियों का भारत को निर्वासन

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कई बार देखा गया है कि किसी घोषित अपराधी को किसी देश की सरकार ने किसी बहाने से स्थानीय न्यायपालिका को मामले की समीक्षा का मौका दिए बगैर ही भारत को निर्वासित कर दिया। इस लेखक को इस बात का ज्ञान नहीं है की ऐसी परिस्थितियों में अलग अलग देशों ने अपने स्थानीय नागरिकों, भारतीय नागरिकों, और तीसरे देशों के नागरिकों के साथ ऐतिहासिक रूप से कैसा व्यवहार किया है। परन्तु यह कहना तर्कसंगत और अंतर्राष्ट्रीय विधान के अनुरूप होगा कि तीसरे देश के नागरिकों को उन के अपने देश की ओर रवाना किया जाए, न की भारत की ओर।

तलाश नोटिस / चेतावनी

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तलाश नोटिस या चेतावनियां किसी घोषित अपराधी या अन्य व्यक्ति को भारत में प्रवेश करने या भारत से बाहर जाने की कोशिश करने पर गिरफ्तार करने की हिदायत के साथ अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों और अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर विभिन्न प्रवेश बिन्दुओं को जारी किये जाते हैं। या फिर किसी व्यक्ति विशेष को देश में न घुसने देने या देश को न छोड़ के जाने देने के लिए जारी किये जाते हैं। आम तौर से ४९८अ (498a) आरोपित पतियों को सरकार की ओर से इस प्रकार के दुश्व्यवहार की कोई आशंका मन में नहीं रखनी चाहिए, सिवाय तब जब उन्होंने आरोपित होने के बाद लम्बे समय तक देश वापस आने में हील हुज्जत की हो।

यदि आप को तलाश नोटिसों के सन्दर्भ में लघु रूप LOC दिखे तो भ्रांत न होवें। इस का अर्थ महज़ लुकआउट सर्कुलर अर्थात तलाश परिपत्र है। नोटिस को सर्कुलर केवल इसलिए कहा जाता है कि ऐसे नोटिसों का मुद्रण और मुद्राचलन कभी कभी सीमित होता है। ऐसा उन परिस्थितियों में होता है जब जनता के बीच नोटिस का प्रसार नहीं किया जाता है और नोटिस का ज्ञान सिर्फ कुछ लोगों को होता है।

उपसंहार

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इसके अलावा ध्यान दें कि पिछले दस बरस में अन्य देशों से भारत को मात्र ४० से ५० आरोपित लोगों को प्रत्यर्पित किया गया है। इस संख्या में भारतीय और विदेशी दोनों शामिल हैं।

प्रवासी भारतियों और भारतीय मूल के व्यक्तियों को अदालत में व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट

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जैसे ही किसी प्रवासी भारतीय को अपने विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा ४९८अ (498a) / ४०६ /३४ के अंतर्गत प्रेषित किये गए आक्षेप का नोटिस मिलता है तो उसे भारत में स्थित अपने वकील को अग्रिम ज़मानत के लिए आवेदन प्रेषित करने का अनुदेश देना चाहिए, और वकील की मार्फ़त अग्रिम ज़मानत या लम्बी अवधि की अंतरिम ज़मानत ले लेनी चाहिए। इस दौरान उसे उस देश में बने रहना चाहिए जहां वह कार्यरत हो। आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धरा २०५ उसे ऐसा करने की आज़ादी देती है। सक्षम अदालत से राहत मिलने पर उसे भारत की ओर प्रस्थान करना चाहिए, और सक्षम अधिकारी के समक्ष प्रतिभूति हेतु / के संग ज़मानतनामा निष्पादित करना चाहिए। तत्पश्चात उसे सक्षम अदालत के समक्ष आगे की कार्रवाई में व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट का आवेदन डालना चाहिए। पूरी तरह से या आंशिक रूप से वांछित राहत मिलने के बाद उसे वापस अपने कार्यस्थान को जाने की पूरी आज़ादी मिल जाती है। कभी कभी परिस्थितियां ऐसी हो जाती हैं कि प्रवासी भारतीय यदि मन को कड़ा कर के जेल में कुछ समय बिताने से न डरने का फ़ैसला करे तो यह उस के लिए कोई बुरी बात नहीं होती


द्वारा लिखित
मनीष उदार द्वारा प्रकाशित।

पृष्ठ पर बनाया गया
अंतिम अद्यतन १६ अप्रैल २०१५ को किया गया
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