दहेज केस में डरने वाली क्या बात है?

What Should I Fear in a Dowry Case?
पुरुषों को दहेज सम्बंधित इल्ज़ामों से डर क्यों लगता है?
अपनी पत्नियों द्वारा लगाये गए दहेज प्रताड़ना के आरोपों से ग्रस्त पुरुष अपने आस पास के लोगों से जो सवाल पूछना शुरू कर देते हैं, उन में से अधिकतर सवाल कुछ और नहीं बल्कि उन के अंतर्मनों में पैदा हो चुके नए डरो के प्रतिबिम्ब मात्र होते हैं। यदि आप के विरुद्ध पुलिस कार्रवाई आरम्भ हो चुकी हो तो आप के मन में डर पैदा होना स्वाभाविक सी बात है, और ख़ास तौर से तब स्वाभाविक है जब आप ने ज़िन्दगी में कभी भी आपराधिक आरोपों का सामना नहीं किया हो। धारा ४९८अ (498a) के अंतर्गत आक्षेपों का सामना करने वाले पुरुषों में से ९९ प्रतिशत पुरुष ऐसे होते हैं जिन पर उन के पूरे जीवन में किसी ने भी किसी भी प्रकार की फौजदारी का इलज़ाम नहीं लगाया होता। उनके बूढ़े माता पिता उन से भी ज़्यादा निर्दोष होते हैं।

ऐसे शक्तिशाली निहित स्वार्थ और सामाजिक शक्तियां जिन्हे डरे हुए मुलजिमों के होने मात्र से भी बड़े फायदे हैं इन डरों को और बढ़ावा देते हैं और देती हैं। नारीवादियों, वकीलों, भ्रष्ट विधि प्रवर्तन अधिकारीयों, मीडिया, पत्नियों(,) और उन के माता पिताओं से निर्मित एक अदद उद्योग है जिसे ४९८अ (498a) उद्योग की संज्ञा देना इसलिए गलत नहीं होगा कि इन सब को ४९८अ (498a) प्रकरणों की तादाद बढ़ने से वित्तीय लाभ है। अतैव इन सभी का निहित स्वार्थ निर्दोष पुरुषों पर अपनी पत्नियों को सताने के इलज़ाम लगाने देने में विद्यमान है। दूसरी याद रखने लायक बात यह है कि जितना ज़्यादा आप डरेंगे इन लोगों को उतना ही ज़्यादा लाभ होगा। और पहली याद रखने वाली बात यह है कि आपकी "पत्नी" और आप के "ससुराल वालों" का ध्येय आप को जेल पहुँचाना नहीं है। वे तो सिर्फ आप के डरों से फायदा हासिल करना चाहते हैं और आप की अपने ऊपर लादे गए क्लेश को काम करने की इच्छा से पैसा बटोरना चाहते हैं। आखिर वे जानते हैं कि आप इस क्लेश को दीर्घावधि तक ढोने पड़ने की आशंका से परेशान हैं।

ऐसे कौन से डर हैं जिन से ४९८अ (498a)/४०६/३४ के अंतर्गत आरोपित पुरुष बहुधा ग्रस्त होते हैं?
ऐसे पुरुषों को प्रायः यह डर होता है कि उन्हें जेल जाना पड़ेगा या फिर पुलिस हिरासत में कुछ दिन बिताने पड़ेंगे या फिर उनके घर पर छापा पड़ जायेगा। वे डरते हैं की उनके वयोवृद्ध माता पिता भाग दौड़ करने, चिंता करने, और अनिश्चित भविष्य के भय से उत्पन्न तनाव के कारण स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्याओं से ग्रस्त हो जाएंगे।

उन्हें डर लगता है कि पुलिस पूछताछ के दौरान उनके साथ मार पीट की जाएगी और / अथवा उन्हें यातनाएं दीं जाएंगी। वे समाज में निहित रूप से विद्यमान अपनी प्रतिष्ठा के पतन से डरते हैं। मीडिया में हो सकने वाला दुष्प्रचार भी उन के लिए अपने आप में चिंता योग्य विषय होता है। नारी अधिकारों, या यूं कहिये कि पत्नी अधिकारों के हितों की चाहत में पागलपन की हद तक डूबी हुई जनता द्वारा दी जा सकने वाली मानसिक यातना से भी वे डरते हैं। उन्हें यह दर भी होता है कि न्यायपालिका का झुकाव स्त्रियों की ओर है, कि उन्हें अग्रिम ज़मानत नहीं मिलेगी, या फिर के उन्हें कारावास में वर्षों व्यतीत करने पड़ेंगे।

बहुत जल्द उन्हें यह पता लगने लग जाता है कि कानूनी कार्रवाई, दांवपेंच और वकीलों के खेलों को समझने सीखने में बहुत ज़्यादा और अनपेक्षित रूप से वक़्त और पैसे की बर्बादी होना लाज़मी है, और साथ ही इस प्रक्रिया में उन ही लोगों के साथ रिश्ते खराब होते हैं जिन से उन्हें मदद की उम्मीद होती या रहती है। वे अपने वकील से भी डरते हैं और उस के हाथों क्लिष्ट होने की आशंका से प्रायः ग्रस्त रहते हैं। इन डरों के पीछे भी डर होते हैं। ४९८अ (498a) आरोपित मुवक्किल सोचता है कि वकील को उस के हितों की परवाह नहीं है, और वह गुप्त रूप से दुसरे पक्ष से मिला हुआ है। ऐसे डरों की वैधता के बारे में व्यापक कथन देना असंभव है। व्यक्ति विशिष्ट प्रकरणों में भी ऐसे डरों की सत्यता को प्रकरण के इतिहास की विस्तृत जानकारी लिए बिना परखना बहुत मुश्किल होता है, और कभी कभी तो जानकारी मिलने के बाद भी मुश्किल बना रहता है।

अपने भयों के फलस्वरूप दहेज प्रताड़ना प्रकरणों में फंसे हुए पुरुषों द्वारा किये जाने वाले कार्यकलाप
अनेक पुरुष इस प्रकार की परिस्थिति में अपने काम पर एक रत ध्यान रख पाने की क्षमता खो बैठते हैं, और इस के कारण अपनी अपनी नौकरियों से हाथ धो बैठते हैं। ऐसे लगभग सभी पुरुषों को मानसिक स्वास्थ्य हानि होती है। वे शराब, सिगरेट, या अन्य प्रकार के मादक पदार्थों का सेवन करने लग जाते हैं। उन्हें तंत्रिकामनोचिकित्सिक अथवा मनोदैहिक कारणों से रोगी बनने का जोखिम उठना पड़ता है। उन्हें अपनी अपनी क्रूर पत्नियों से पीछे छुड़ाने हेतु और अपने अपने दुःस्वप्नों को जल्दी से जल्दी समाप्त करने हेतु समझौते करने पड़ जाते हैं, और इन समझौतों में पैसे का भारी नुक्सान उन में से प्रत्येक को उठाना पड़ जाता है। उन्हें तनाव से उत्प्रेरित समझने बूझने की शक्ति के कम हो जाने के कारण शोषक वकीलों को मोटी मोटी रक़में देनी पड़ जाती हैं। वे और उनके माता पिता पारस्परिक कल्याण सम्बंधित चिंता से ग्रस्त हो जाते हैं और इस के फलस्वरूप चैन खो बैठते हैं। बहुत अधिक बिगड़ जाने वाले मामलों में आरोपित पति के परिवार में एक या फिर एक से अधिक व्यक्ति आत्महत्या का शिकार बन जाते हैं।

क्या ये डर जायज़ हैं?
नहीं। ये कतई जायज़ा नहीं हैं। आप का इतना ज़्यादा डरना अपने आप में इस प्रकरण के दौरान आप पर थोपे जाने वाली सब से बड़ी सजा है। कम डरना, ज़्यादा करना, और अपने आप को और ज़्यादा ढील देना बड़ी सीमा तक आप के अपने हाथों में है। विधायिका और मीडिया को भले ही आप की पीड़ा की परवाह न हो, पर जनता, थाने के कर्मचारी, न्यायपालिका, आप के पडोसी, और धीरे धीरे विशाल रूप धारण करता पुरुष अधिकार आंदोलन आप के पक्ष में हैं। आप को इस परीक्षा में अनेक नए मित्र मिलेंगे, और ठीक इसी तरह कुछ पुराने मित्रों को आप खो देंगे। दोनों प्रक्रियाएं आप की बढ़ोतरी में कारगर सिद्ध होंगी।

पुलिस आप के साथ किसी प्रकार की मारपीट नहीं करेगी, और इतना ही नहीं बल्कि उन से होने वाली हर भेंट पर आप को बैठने के लिए कुर्सी दी जाएगी। यदि आप का प्रकरण असाधारण प्रकरणों में भी असाधारण माना जाता हो तो आप को अपने घर पर छापा पड़ने का थोड़ा सा भी डर लगना चाहिए, अन्यथा ऐसा होने की कोई सम्भावना नहीं है। लेकिन याद रहे कि अपनी अगली पत्नी (यदि आप फिर से शादी करने का इरादा रखते हों) से ज़ेवर कतई ना लीजियेगा और फिर से शादी करने से पहले अपनी माता के सभी ज़ेवरों को बेच दीजियेगा। ज़ेवर किसी भारतीय पुरुष के जीवन में विपत्ति के अलावा कुछ नहीं ला सकते

काफी समय से ४९८अ (498a) आरोपित अत्यधिक बहुसंख्य पुरुषों को अग्रिम ज़मानत मिलती आ रही है। आप को भी यह राहत मिलने की ऊँची सम्भावना है। आपका अधिवक्ता आप का मित्र है। यदि आप ने उस को ठीक तरह से उस के बारे में चार लोगों से जानकारी ले कर और पूछ ताछ करके चुना है तो उस पर संदेह क्यों करते हैं? न करें। कारागार की चिंता इतनी जल्दी शुरू न करें। यदि आप आखरी अपील तक अपना केस लड़ते हैं और सामने वाली पार्टी में लम्बी लड़ाई लड़ने का माद्दा है तो भी प्रकरण का फैसला होने में कम से कम १५ वर्ष लग जायेंगे। अपने लिए वकील चुनने का काम सोच समझ के, ठहर के, और सूझ बूझ से करें। बिना चेतावनी के अकस्मात गिरफ्तार हो जाने के अपने किसी निराधार भय के कारण वकील का चुनाव जल्दबाज़ी में न करें।

आप पर ऐसे घटिया इलज़ाम लगाने वाला वह व्यक्ति न तो महिला है न ही वह आप की पत्नी है, और न ही उस में आप के ख्यालों को पढ़ने की शक्ति है। ऐसा नहीं हो सकता कि वह आखिर तक कानूनी लड़ाई लड़े। या फिर समझौता करने के लिए आज जो रक़म मांग रही है, एक दिन तंग आ कर उस से कम पर समझौता न करे।

दहेज एवं घरेलू हिंसा सम्बंधित कानून अपने व्यापक गलत इस्तेमाल के कारण पहले ही हमारे देश में न्यायपालिका और यहाँ तक कि पुलिस विभाग में मज़ाक का सामान बन के रह गए हैं। बलात्कार एवं लैंगिक हिंसा सम्बंधित कानून भी उसी ओर अग्रसर लग रहे हैं। ऐसे विधानों का पारित होना दोनों लिंगों के सदस्यों के विरुद्ध अपकार और अपराध है।


द्वारा लिखित
मनीष उदार द्वारा प्रकाशित।

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अंतिम अद्यतन २७ अप्रैल २०१५ को किया गया
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