दहेज प्रताड़ना आक्षेप सहने वाले पति: प्रारूपिक ४९८अ पीड़ित पति

Typical Husbands who get 498a Complaints against them
"तू काणी मैं कूब्बा
दो घर डूबते एक डूबा"

— प्राचीन जाट उक्ति
अनेक प्रकार के पतियों के विरुद्ध ४९८अ आक्षेप उनकी पत्नियां प्रेषित करती हैं। उन में से कुछ बदमाश होते हैं, जिनका ठीक निवास स्थान कारागार में होता है। उन में से अनेक झूठे इल्ज़ामों के शिकार होते हैं। अनेक प्रवासी भारतीय अथवा कंप्यूटर इंजीनियर होते हैं। अनेक अपनी पत्नियों के मूल परिवारों से अधिक समृद्ध होते हैं। अनेक ऐसे होते हैं जिन्होंने वधु को विवाह में और विवाहोत्तर काफी स्वर्ण भेंट दिया होता है। अनेक धोखेबाज़ और व्यभिचारिणी स्त्रियों के पति होते हैं। कुछ आत्मकामी वक्तित्व विकार के मरीज़ होते हैं, और अनेक ऐसी पत्नियों के पति होते हैं जो पत्नियां आत्मकामी व्यक्तित्व विकार की मरीज़ होती हैं। (४९८अ पत्नियों पर लिखे गए लेख से आत्मकामी व्यक्तित्व विकार के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करें।) अनेक पति मूर्ख होते हैं और उन में स्वयं को पराजित करने वाले गुण होते हैं

वे पति जिन के विरुद्ध आक्षेप होते हैं वे समाज के सभी आर्थिक और सामाजिक वर्गों का हिस्सा होते हैं। मैं स्वयं पुस्तकों पर जिल्द चढाने वाले एक पति, दुकान पर नौकी करने वाले एक पति, और कॉल सेंटर पर नौकरी करने वाले एक पति, ऐसे अनेक गरीब पतियों से बात कर चूका हूँ जिन के विरुद्ध दहेज प्रताड़ना के आरोप लगे हुए थे। दूसरी ओर अनेक ऐसे ४९८अ प्रताड़ित पति होते हैं जो समृद्ध परिवारों से आये होते हैं। प्रिंस तुली, भूतपूर्व स्वर्गीय केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह के पोते, रघुनाथ मोहंती के पुत्र, और तमिल फ़िल्मी कलाकार प्रशांत के नाम विचार में आते हैं। ऐसा मुमकिन है की इन में से जो पति अमीर या कामयाब हैं, वे अपनी ही कामयाबी के दो में से एक प्रकार में शिकार हो गए हैं। या तो वे ज़्यादा अमीरी के कारण बिगड़ जाते हैं और आत्मकामी व्यक्तित्व विकार या आपराधिक प्रवृत्तियों के मरीज़ बन जाते हैं। या फिर पैसा होने के कारण उन की पत्नियां उन से कानूनी रास्ता अख़्तियार कर के तगड़ा माल उगाहने के चक्कर में होती हैं।

कुछ ४९८अ पीड़ित पति स्वार्थी और बद्तमीज़ किस्म के लोग होते हैं। मुझे ऐसा मालूम है क्योंकि अनेकानेक पीड़ित पति मुझ से टेलीफ़ोन पर अथवा चैट पर अथवा कमैंट्स में मुझ से अनेक वर्षों से परामर्श ले रहे हैं। इस संख्या में से मायने रखने वाला हिस्सा मुझ से असार्वजनिक वार्तालाप करने के बाद धन्यवाद तक नहीं बोलते हैं। अनेक मुझे मिस्ड कॉल्स देते हैं, और अपेक्षा रखते हैं कि मैं फिर उन्हें अपने टेलीफ़ोन से दूरभाष करूंगा और उन्हें परामर्श दूंगा। एक सज्जन तो अपने ईमेलों में मुझे अज्ञात कारणों से बिनाबात गालियां देने लग गए। ऐसे बद्तमीज़ पतियों के प्रकरणों में आम तौर पर ऐसा होता है कि उन्हें अपने से भी अधिक स्वार्थी पत्नियां टकर जाती हैं, जो कुछ पैसा बनाने के लिए पक्षपातपूर्ण कानूनों का फ़ायदा उठाना चाहती हैं। अनेक लोग शायद यह बोलेंगे कि ऐसे स्वार्थी पतियों को उनकी करनी का फल उनकी पत्नियों, पुलिस, वकीलों, और अदालतों के हाथों मिलता है।

कई पति झूठे इल्ज़ामों को देखने के बाद भी अपनी पत्नियों को चाहना नहीं छोड़ते हैं। ऐसे पुरुष ४९८अ उत्पीड़न से अधिक भयंकर उत्पीड़न अपने आप अपने ऊपर थोपना चाहते हैं। उन्हें थोड़ा समझदार बनना पड़ेगा और सच्चाई को साफ़ साफ़ देखना होगा। किसी पत्नी द्वारा अपने पति और उस के माता पिता पर झूठे आपराधिक आक्षेपों का मढ़ना प्रेम का द्योतक अथवा चिन्ह नहीं होता। सच्चाई तो यह है कि ऐसे घटिया और खतरनाक आरोपों के बाद सुलह का कोई सवाल ही नहीं रह जाता, यदि प्रकरण में पीड़ित जो पति है, उस का दिमाग ठीक है तो। ऐसे हाल से निकलने का एक मात्र रास्ता तलाक़ है।

कुछ पति ऐसे हालात में या तो आत्महत्या कर लेते हैं या फिर किसी हिंसक अपराध को कर अंजाम देते हैं। ऐसे कार्य एक सीमित स्तर तक समझ में आने वाले हैं। सीमित स्तर इसलिए क्योंकि कोई कार्य मात्र समझने योग्य होने से उचित या फ़ायदेमंद नहीं हो जाता। आखिर किसी परिवार को अपने बच्चे का अपने ही ऊपर पशुता पूर्ण व्यवहार या फिर यहाँ तक कि आत्महत्या जैसी त्रासदी क्यों सहने के लिए मजबूर होना जायज़ है? ख़ास तौर पर इस बात को मद्दे नज़र रखते हुए के सारे इलज़ाम झूठे होने के कारण ऐसा होना "करे कोई और भरे कोई" वाली बात है। पत्नी अथवा उसके माता पिता पर हमला करने से भी किसी समस्या का हल नहीं निकलता। बस आरोप-पात्र की फ़ेहरिस्त में कुछ और अपराध जुड़ होते हैं या फिर नया आपराधिक प्रकरण पंजीकृत हो जाता है। ऐसी सूरत में मूल प्रकरण भी मज़बूत हो जाने का डर है लोगों के मन में दुर्भावना के पैदा होने की सम्भावना के कारण।


द्वारा लिखित
मनीष उदार द्वारा प्रकाशित।

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अंतिम अद्यतन २३ फ़रवरी २०१८ को किया गया
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